Kerala High Court verdict केरल हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक और महिला सशक्तिकरण की दिशा में मजबूत कदम उठाते हुए फैसला सुनाया है कि बेटियों को भी अब अपने पिता की पैतृक संपत्ति में बराबरी का अधिकार मिलेगा। अदालत ने यह फैसला केरल की पारंपरिक संयुक्त हिंदू परिवार प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1975 और हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 की व्याख्या करते हुए दिया।
अदालत ने साफ किया कि अब बेटियों को भी उसी तरह संपत्ति में हिस्सा मिलेगा जैसा बेटों को मिलता है, यदि उनके पिता की मृत्यु 20 दिसंबर 2004 के बाद हुई हो, और उस दिन तक संपत्ति का कोई बंटवारा न हुआ हो। पहले की स्थिति में इन अधिनियमों की कुछ धाराएं बेटियों को संयुक्त परिवार की पैतृक संपत्ति में सहाधिकार नहीं देती थीं। इस वजह से महिलाओं को न्याय के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता था।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अब किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा। यदि पिता की मृत्यु 2004 के बाद हुई है, तो बेटियों को भी संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा, जब तक कि उस संपत्ति का पूर्व में कोई कानूनी बंटवारा नहीं हो चुका हो।
यह फैसला उस केस में आया जिसमें महिलाओं ने अपने दिवंगत पिता की संपत्ति में हिस्सा मांगते हुए याचिका दायर की थी। कोर्ट ने पुराने कानूनों को महिला विरोधी बताते हुए उन्हें वर्तमान संविधान के बराबरी के सिद्धांत के खिलाफ बताया और कहा कि अब समय आ गया है कि समाज में बेटियों को भी बराबर का स्थान और अधिकार दिया जाए।
इस फैसले का व्यापक असर न केवल केरल में बल्कि पूरे देश में देखने को मिल सकता है, क्योंकि यह समानता, न्याय और महिला अधिकारों की दिशा में एक मजबूत संदेश देता है।
अब बेटियों को भी पिता की संपत्ति में बेटों के समान अधिकार मिलेगा, जिससे उन्हें आर्थिक और सामाजिक स्तर पर मजबूती मिलेगी। यह फैसला देश में लैंगिक समानता के लिए एक प्रेरणादायक कदम है।